Wednesday 2 November 2022

अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै

अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।
अन्न-धन्ना क कुठठारों की पूजा होंदी छ, पूजा की वा थाळ नी रै ।।
कार्तिक महीना आली बग्वाळ, बग्वाळ की वा जग्वाळ नी रै । 
खाली गौंव अर रीता कुंडों की धुरपळी मा अब पठाळ नी रै ।।

14 साल बनवास काटी, राम जी ता घौर एगे ।
अपणु चली गेन जु छोड़ीक परदेश, सदानी कु परवासी ह्वेगे ।।
आणि-जाणी ता छोड़ी ही छ पर, बोली-भाषा भी बिसरी गे ।
अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।।

बीर भड माधो सिंह न लड़ै जीती ता हमन बग्वाळ मनै ।
उन्की सेना कु घौर पहुँचण पर, खुशी मा हमन फिर ईगास मनै ।।
हमारी ईगास अलग ही होंदी छ, अलग ह्वेकी भी अब खास नी रै ।
अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।।

जूं गोरों की पूजा होंदी छ, ऊँकु आज बरकटाळ ह्वे ।
बॉडी मा फूल डाळीक, 101 गोरों तै ख़िलान्द छ ।।
आज अपणु रीति-रिवाज, बार त्यौहार सभियों तै हम भुली गे ।
अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।।

एक महीना पहली बटिन हम, भैलु बणाण मिसि जांद छै ।
औराण-कौराण दुख-दलेदर, उक्कल जगै तै भगांद छः ।।
स्वाळ पकौड़ी खुद भी खांद अर अबाजो तै भी देन्द छः ।
अब पहली जन बग्वाळीयों की वा बात नी रै ।।

बनी बनी की बग्वाळ हम मनांद छ पहाड़ मा ।
ईगास-बग्वाळ, भीम-बग्वाळ, रिख बग्वाळ भी तुम जाणदा ? 
दुनियां मा तुम जख भी राँ पर, अपणी संस्कृति सी भूल्यां न ।
बोली भाषा रीति रिवाज अपणु तुम छोड़ियाँ न ।।

© विनोद जेठुडी 30 अक्टुबर 2022, दुबई, यु.ए.ई

Friday 16 September 2022

भ्रष्टाचार

जूँ पैँसा वाळोन, पैँसोँ कु थैला भोरि-भोरिक दिनिन 

ऊँ परिक्षा पास करिक आज अधिकारी बणी गेन 

अर जूँ विचार पढै क खातिर राती-राती जगदी रैन 

ऊँक अधिकारी बणण कु सपना, सपना ही रैगेन 


विनोद जेठुडी 16/09/2022, सुबह 8:20 A.M.


Tuesday 22 December 2020

येसु की नौ-नवाण हमन करियाली

 


माँ जी गौँ बटी "समूण" भिजी छ अर दगड मा रैबार दियुँ छ कि ... 

येसु कु साग-भुजी भिजणु त्वेकु, तू भी चखियाली 
ककडी अर मुंगरी कु बेटा, नौ-नवाण करियाली ।
मेरी भिजी या “समूण” त्वैकु, गौँव की याद दिलाली 
खुदेणी न रैयी बेटा, मन ना उडैयी ॥ 

छाछँ मिलली त्यख अगर ता छाँछ तू लेयी 
मुगँराडी अर चुन भिजणु “पळ्यो” बणैयी 
खट्टु जादा होलु अगर ता थुडसी पाणी मिलैयी 
सिलोटु मा कु पिस्यु लुण भी थुडिसी मिलैयी

पिण्डालु कु पत्ता भिजणु,  पत्युड बणैयी 
सौती सौती मुंगरी भिजणु, लग़डी बणैयी
द्वीसेरी मेरी घी बणायीँ त्वेतै भिजायीँ
कोदु की रोटी बणैली ता, वीँ प लगैयी

कखडी खाण मा क्या बुन तब कन रस्याण ये ग्यायी 
किलै कि माँजी कु सिलोटु मा कु पिस्यु लुण भी बिज्युँ छायी
हरि मिर्च मजाणी कुछ ज्यादा ही धोळी द्यायी 
किलै कि चरचरु बरबरु कुछ ज्यादा ही ह्वे ग्यायी   

येसु क साग भुज्जी हमन भी चखियाली 
ककडी अर मुंगरी की, नौ-नवाण करियाली ।
गौँ बटी अयीँ "समूण" की इन मिठास मयाळी 
कि जिकुडी मा छाळी पोडी, रस्याण ये ग्यायी ॥

© विनोद जेठुडी 26 अगस्त 2019 

अणसाळ

कुटळी, दथडी अर थमाळु सभी खुंडु ह्वेगेन

किलै कि अणसाळ कर्याँ, सालोँ ह्वेगेन 

औजार जु खुँडॅ छन, खुँडु क खुँडु रै गेन

उंकु जगा नै नै अर पैनु पैनु औजार ये गेन

पळ्यांदार अब गौँव मा क्वी नी रै गेन

घौण्या बिचारु भी बडु मुस्किल सी मिलदन

अब तुंग कु जलडोँ कु कोयला नी बणादन

पाणी कु छपाँक मारी माटु निस नी दबाँदन

अब गौँव मा क्वी अणसाळ नी करदन

पळ-पळ्याँ औजार, बाग़डियोँ मु ल्यान्दन 

© विनोद जेठुडी 22/12/2020 at 15:00 

Wednesday 31 July 2019

धर्मु तै स्कुल मा ठंड नी लगदी

पुष कु महीना, अर धार मा कु स्कुल
बथौँ कु स्वीस्याट मा ठँड न कुहाल 
सभी स्कुल्या बंडी अर जूत्त पैरी क स्कूल आंदन 
पर धर्मु एक बुरर्सैट अर चप्पल पैरी क स्कूल आंदु 
गुरुजी न पुछी, कि किलै रे धर्मु ?
त्वै सन ठंड नी लगदी ? 
जू तू कभी भी बंडी नी परदी ?  

धर्मु बुलदु कि ना गुरुजी, मैँ सन ठंड नी लगदी 
गुरुजी न फिर पुछी कि चल त्वै सन ठंड नी लगदी
पर फिर तू जुत्त किलै नी परदी ? 
धर्मु बुलदु कि गुरुजी
जुत्त न म्यारु टँगडु बिन्यांदु 
याकुँ मी चप्पल पैरी क ही स्कूल आंदु 

अरे माणी कि जूत्त त्वै पर बिन्यांदन छन
अर ठँड भी त्वै नी लगदी .... 
पर तीँ पैन्ट क क्या हाल बणया छन ? 
१० जगहोँ मु थिगळा धोळी धोळी तै 
टँकळ्ये – टँकळ्ये क काम चलाणी छयी 
तू अफु खुनी नयी ड्रेस किलै नी लिल्यानी ? 

दणमण दणमण आंशु धुळदु धर्मु 
मोणी उंद करिक रोणु मिसी जांदु 
अर बुलदु कि गुरुजी....... 
होंदी अगर बन्डी मीमु ता, ता इन नी ठिठकुरांदु 
होंद अगर जुत्त मीमु ता पैरी जरुर आंदु 
कनकै बतौँ गुरुजी तुमतै कि गरिबी क्या होंदु ? 
याकुँ तै मै गुरुजी योँ थिग़ळा झुलोँ मा ही आंदु - २


© विनोद जेठुड़ी 
दिनाँक 30/07/2019 at 5:50 a.m

Monday 31 December 2018

नै साल की सुभकामनाएँ

राजी रैया, खुशी रैयाँ, सर्व सम्मपन्न हुयाँ 
घौर परिवार मा, सदा सुख - शांति बण्यु रैयाँ 
मिलु ऊ हर खुशी जैसी मुखुडी सदा हैसँदी रैया 
औण वाळु साल तुमतै, हर वा खुशी दियाँ 

नै साल २०१९ की हार्दिक सुभकामनाएँ 

विनोद जेठुडी 

Monday 4 June 2018

फौजी कु फर्ज अर परिवार

एक माँ कु फर्ज कु खातिर
हैकी माँ तै छोडीक चली ग्योँ मी
भारत माँ की रक्षा खातिर
आज शहिद हुवेग्योँ मी

माँ मै माफ करी
मै तेरु बुढेंदु कु सहारु नी बणी पायी
अपणु ख्याल रखी अर
औरोँ तै भी समझैयी

बाबा मेरु दुधी नौनियाल कु
खुब देखभाळ करी
अर वेतै भी बडु हुवेक
फौजी ही बणौयी

बीना... तू हिम्मत रखी अर
माँ बाबा की सेवा करी
मेरी खुद मा तू बीना
अकेला मा रोणी ना रैयी

हम फौजी छाँ 
देश क खातिर मरी मिटी जौला
पर भारत माँ पर कभी भी
आँच नी औणी द्योला
पर भारत माँ पर कभी भी
आँच नी औणी द्योला 

© Vinod Jethuri on 04/05/2018 @ Sharjah

पलायन

जख पढणु तै स्कूल न हो
गाँव जाणु तै सडक ना हो
विजळी की सुविधा ना हो
प्याणु तै पाणी न हो 
इलाज करणु तै अस्पताळ न हो
अर जू अस्पताळ हो भी
ऊ मा डाक्टरोँ कु नामो निशान न हो
तूम ही बुला वख रा त कन कैक रा
फिर पलायन नी करा ता क्या करा
© Vinod Jethuri on 06/05/2018 @ Sharjah

मी प्रवासी पहाडी छौँ

हर साल की तरह ये साल भी दुबई मा आयोजित उत्तराखँडी काब्य एँव साँस्क्रतिक सम्मेलन KESS - 2018 क अवसर पर मीन अपणी या कविता "मी प्रवासी पहाडी छौँ" प्रस्तुत करी, आप सभियोँ कु दग़डी सम्लियात करणु छौँ शायद आपतै भी पसँद आली । 

मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
देवभूमी उत्तराखँड कु रैबासी छौ                           
छोडी ये ग्योँ वीँ धरती तै ।
आज बण्यु परवासी छौँ ।।

परवासी बण शौक नी  मीतै
मजबूरी कु मारियुँ छौ
स्वास्थ्य, सडक अर शिक्षा जन
मूलभूत सुविधाओँ सी हारयुँ

विजळी हो जख दिखणु कु अर
बाठु हो हिटणु कु
स्कूल हो जख पढणु कु अर
मास्टर हो दिखणु कु  
तूम ही बुला कन कै राँ वख ?
जख स्कूल जांद छोरा बस नचणु कु

मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
डाँडीकाँठियोँ कु रैबासी छौ
याकुँ छोडी मीन वीँ धरती तै
आज बण्यु परवासी छौ

जख अस्पताळ हो ईलाज करणु कु
अर डाक्टर हो जान बचाण कु
तूम ही बुला तब कन कै राँ वख ?
बिन मौती कु अध-बाटु मुन्नु कु
एम्बुलेँस की सुविधा नी जख  
मरिजोँ तै अस्पताळ पहुँचाणु कु
वख दारु   वैन चना छन
घर घर दारु पहुँचाणु कु

मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
रौतेळ मुलक कु वासी छौ 
याकुँ छोडी मीन वा रौँतेली धरती
आज बण्यु परवासी छौ

राशन की दुकानियोँ मा जख
राशन नी खाणु कु (अरे मीन बोली)
ऊँ दुकानियोँ मा मीन सुणी अब
दारु मिलली प्याणु कु
रोजगार भले कुछ न हो वख
खाणु अर कमाणु कु
पर गौँ – खोळोँ का येथर पैथर
ठेका खुली गेन प्याणु कु

मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
घनघोर जँगळो कु रैबासी छौ
याकुँ छोडी मीन वीँ धरती तै
आज बण्यु परवासी छौ

खेती पाती कुछ कै नी सकदाँ
सुंगर अर बाँदर आणा छन खाणु कु
रात विरत कखी जै नी सकदाँ
मैसाग लग्युँ छ बोणो कु
धार सुखी गेन, गाड घटी गेन
पाणी नी मिलणु पेणू कु
तूम ही बुला कन कै राँ वख ?  
जख मूलभूत सुविधायेँ न हो जीणु कु

मी पहाडी छौँ, गढवाळी छौँ
गाड गदनियोँ कु रैबासी छौँ
याकुँ छोडी मीन ऊँ गदनियोँ तै
आज बण्यु परवासी छौ

सुविधायेँ भले कम हो लेकिन  
रौनक अलग ही छ पहाडोँ कु  
मनिखी ता रै पर देवता भी जख
पसंद.....,  करदन बसणु कु 
सडक, स्वास्थ्य अर शिक्षा दगडी
रोजगार हो गर वख जीणु कु
मनखियोँ तै स्वर्ग हुवे जालु
उत्तराखँड.....,  बसणु कु
मनखियोँ तै स्वर्ग हुवे जालु
उत्तराखँड..... बसणु कु - 2


© विनोद जेठुडी on 10/05/2018 @ KEES 2018

Tuesday 11 July 2017

सरै गौंव सुनसान नजर औन्दु


यूं तिबारी - डिंडालियों मा 
अब क़िबलाट नी सुणेन्दु 
यूं चौक डिंडालियों मा 
भी क़्वी बैठण कु नी औन्दु 
छाजा - गुठ्यार मा 
क़्वी भैंसु नी रमंदु 
अर सरै गौंव खोळा मा 
क़्वी मनिख नी दिखेंदु 
कखी मेरी आँखि अर कन्दोड़ी 
फूटी ता नी गे होला 
किलै कि न कुछ दिखेंदु 
अर न कुछ सुणेन्दु 
सरै गौंव सुनसान नजर औन्दु 
सरै गौंव सुनसान नजर औन्दु 
© विनोद जेठुड़ी ११/०७/२०१७