Tuesday 15 February 2011

रुम-झूम बरखा मा माया ऊलार

तडतडू घाम मा पसीना कु धार
सुरसुरया बथौं मा जड्डू न बुखार
रुम-झूम बरखा मा माया ऊलार
चल प्यारी जौला घुमणू बजार..

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 2010
14 फ़रवरी 2011 @ 07:07 AM

Friday 11 February 2011

सुवा बिचारी कन होली कुजाणी ?

सुर-सुर बथौ होलु डांडियो मा चलणी
बांज कि जडियो कु चचकार पाणी
दगडियो क गैल होली छवी बात लाणी
सुवा बिचारी होली घास कु जाणी..
घसेरी पाखों मा गीत होली गाणी
रुडी क दिनो मा बोण-बोण डबकणी
घास कु बान कन होली भटकणी ?
गीत ही गीत मा होली धै लगाणी..
चला दगडियो अब घौर नी जाणी ?
मैत की वीं तै खुद होली लगणी
स्वामी की खुद मा रामी बौराणी
क्वासु शरीर थक होली बिसाणी..
वीकी खुद आज मन तै सताणी
सुवा बिचारी कन होली कुजाणी ?

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 2010 
11 फ़रवरी 2011 @ 21:51

Tuesday 8 February 2011

रुम-झूम बरखा (गढवाली शायरी)

दिन दोपहरी मा छंवी बात लान्दी..
रात सुपनियों मा सुट ये जान्दी..!
तेरी माया मा तर बण्यू छौ..♥♥♥....
रुम-झूम बरखा मा छपा-छौली लौन्दी..!!

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 2010
8 फ़रवरी 2011 @ 19:06

Monday 7 February 2011

क्या होली करणी ? (गढवाली शायरी)

कुंगळी, कुळमुली, कळबळी, कळछडी..
कन कुजांणी कख क्या होली करणी ?..
मन मयाळु मायादार मयाळी..♥♥♥....
मन मन मा होळी मुळ-मुळ मुस्काणी..!

७ फ़रवरी २०११ @ २२:२६
 सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी